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30 Days Festival Competition लेखनी कहानी -17-Oct-2022 शरद पूर्णिमा(भाग 29)


            शीर्षक :- शरद  पूर्णिमा

       शरद पूर्णिमा आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इसदिन चन्द्रमा की चाँदनी धवल होती है इस रात की एक कहावत है कि चन्द्रमा  से अमृत की बर्षा होती है इस लिए दिन में खीर बनाकर रात को खुले आँगन में रखते और वह खीर सुबह  खाते है।

                 ऐसा कहा जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इसलिए देश के कई हिस्सों में इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना की जाती है। इस तिथि को धन दायक माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी धरती पर आती है। चंद्रमा इस दिन अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होता है। ऐसा कहा जाता है।

               हर महीने में पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि पर व्रत करने से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए एक साहूकार की दो बेटियां महीने में आने वाली हर पूर्णिमा को व्रत किया करती थी। इन दोनों बेटियों में बड़ी बेटी पूर्णिमा का व्रत पूरे विधि-विधान से किया करती थी। जबकि छोटी बेटी व्रत तो करती थी लेकिन नियमों में उस तरह से पालन नहीं करती थी। नियमों को आडंबर मानकर उनकी अनदेखी करती थी।

       साहूकार ने अपनी दोनों बेटियों का विवाह समय पर कर दिया। बड़ी बेटी के घर समय पर स्वस्थ संतान का जन्म हुआ। छोटी बेटी को भी संतान हुई लेकिन, उसकी संतान जन्म लेती ही दम तोड़ देती थी। जब उसके साथ ऐसा दो से तीन बार हो गया तो उसने एक ब्राह्मण को बुलाकर अपनी पूरी व्यथा सुनाई साथ ही इसका उपाय बताने के लिए भी कहा। उसकी सारी बात सुनकर और कुछ प्रश्न पूछने के बाद ब्राह्मण ने उससे कहा कि तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो, इस कारण तुम्हे व्रत का पूरा फल नहीं मिल रहा है और तुम्हे अधूरे व्रत का दोष लगता है। ब्राह्मण की बात सुनकर छोटी बेटी ने पूर्णिमा व्रत पूरे विधि-विधान से करने का निर्णय लिया।

                        परन्तु पूर्णिमा आने से पहले ही उसने एक बेटे को जन्म दिया। जन्म लेते ही बेटे की मृत्यु हो गई। इस पर उसने अपने बेटे शव को एक पीढ़े पर रख दिया और ऊपर से एक कपड़ा इस तरह ढक दिया कि किसी को पता न चले। फिर उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया और बैठने के लिए वही पीढ़ा दे दिया। जैसे ही बड़ी बहन उस पीढ़े पर बैठने लगी, उसके लहंगे की किनारी बच्चे को छू गई और वह जीवित होकर तुरंत रोने लगा। 

                  इस पर बड़ी बहन पहले तो डर गई और फिर छोटी बहन पर क्रोधित होकर उसे डांटने लगी  और बोली,"  क्या तुम मुझ पर बच्चे की हत्या का दोष और कलंक लगाना चाहती हो! मेरे बैठने से यह बच्चा मर जाता तो?

             इस पर छोटी बहन बहुत  ही आदर से बोली ,"  बहन यह बच्चा मरा हुआ तो पहले से ही था। दीदी, तुम्हारे तप और स्पर्श के कारण तो यह जीवित हो गया है। पूर्णिमा के दिन जो तुम व्रत और तप किया करती हो, उसके कारण तुम दिव्य तेज से परिपूर्ण और पवित्र हो गई हो। अब मैं भी तुम्हारी ही तरह व्रत और पूजन करूंगी। इसके बाद उसने पूर्णिमा व्रत विधि विधान से किया और इस व्रत के महत्व और फल का पूरे नगर में प्रचार किया। जिस प्रकार मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु ने साहूकार की बड़ी बेटी की कामना पूर्ण कर सौभाग्य प्रदान किया, वैसे ही हम पर भी कृपा करें।

        उस समय से ही इस ब्रत को करने की  प्रथा शुरू होगयी ।तबसे यह त्योहार  बहुत ही श्रद्धा से मनाया जारहा है।

30. Days Fedtival Competition  हेतु

नरेश शर्मा " पचौरी "


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5 Comments

Supriya Pathak

09-Dec-2022 09:24 PM

Bahut khoob 🙏🌺

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Bahut khub

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Bahut sundar rachna likha hai aapne sir 🌺👌💐🙏

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